प्रथम देव का पूजन कर लो
मन-मंदिर में स्थापित करो,
उनको प्रथम देव के रूप में।
सारी सृष्टि से भी बढ़कर,
है स्नेह जिनके स्वरूप में।
नमन करो माता-पिता को,
जिनके चरणों में चारों धाम।
जुगल कर-कमलों को जोड़,
प्रेम -भाव से कर लो प्रणाम।
चरण-रज का तिलक लगा लो,
सादर- सप्रेम झुका लो शीश।
अभिनंदन कर स्नेह आदर से,
आ पा लो प्यार भरा आशीष।
माता-पिता से ही हैं हम पाये,
सम्पूर्ण जगत में देख पहचान।
माता पिता के कारण ही तो,
मिलता सभी जगह सम्मान।
पाल-पोष कर माता पिता ने,
हमको बनाया है तेजस्वान ।
पढ़ा-लिखा कर आज हमको,
बनाया है जगती में गुणवान।
वात्सल्य का अमृत पान करा,
तन- मन हमारा तृप्त किया।
सेवा,त्याग औ समर्पण कर,
जीवन यह है झंकृत किया।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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