मेरा दोष (लघुकथा)
घर वालों की उपेक्षा और फटकार सुन नंदनी का मन लहू-लुहान हो उठता। मन की वेदना अंखियों में छलकने लगती। जिसे छिपाने के प्रयास में नजरें शुन्य की ओर फेरना पड़ता। परन्तु उस शुन्य के बीच भी कई प्रश्न चिन्ह उभर उठते। आखिर मेरे बात- विचार, व्यवहार में क्या त्रुटियांँ रह गयी ? जिसके कारण सभी मुझसे रूष्ट रहते हैं ? मेरे लिए सभी लोग के चेहरे पर असंतुष्टि के भाव दिखते हैं ?
उसने मन-ही-मन अपने सारे क्रिया-कलापों, कर्तव्यों, बोली -व्यवहारों पर गहनता से विचार किया । नहीं उसने अपनी बोली-व्यवहारों में कोई कमी नहीं रहने दी।
फिर वह उन क्षणों का अध्ययन करने लगी जिस क्षण में लोग उसपर नाराज होते हैं। प्रथम क्षण वह था जब लोग उसे सुंदर अथवा शालीन कह देते। दूसरा- समझदार और बुद्धिमान कहते, इमानदार और व्यवहार-कुशल कह देते। आकर्षक व्यक्तित्व की धनी कहते। ईश्वर प्रदत्त इन्हीं गुणों तथा कुछ अपने सुविचारों, सद्व्यवहारों के कारण भले लोगों के बीच उसकी लोकप्रियता और प्रसिद्धि के कारण कुछ लोग, विशेष कर परिजनों की आँखों की किरकिरी बनी हुई थी। ईर्ष्या की भावना से ग्रस्त हो वे सभी उसका अपमान, अवहेलना और तिरस्कार करते हैं।आज उसकी अच्छाईयांँ ही उसके दुःख का कारण बन गयी ,जिसे वह चाहकर भी दूर नहीं कर सकती।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति,बधाई
ReplyDeletehttp://vivekoks.blogspot.com/2022/10/blog-post_11.html
किसी की अच्छाइयाँ कभी भी दुख का कारण नहीं बनतीं, उन पर अहंकार करना ही दुख का कारण है
ReplyDeleteचिंतन परक सोच।
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण लेखन।
बहुत ही सुन्दर लघुकथा
ReplyDeleteसभी टिप्पणी कारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएंँ 🙏🙏🙏🙏🙏❤️❤️❤️❤️❤️
ReplyDeleteसुन्दर लघु कथा
ReplyDeleteभावात्मक आलेख!
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