मेहनत गरीबों की
नजर उठा कर देख लो मेहनत गरीबों की।
कर्म क्षेत्र ही सदा रहा है जन्नत गरीबों की
दिनभर कड़ी मेहनत कर,पसीना बहाते हैं।
तब जाकर कहीं दो जून की,रोटी वे पाते हैं।
राई से भी सूक्ष्म होती है किस्मत गरीबों की।
कर्म ही तो है पूजा-व्रत-आराधना उनकी।
कर्म ही जप-तप है, सेवा-साधना उनकी।
भण्डार नहीं हो पाता है,उन्नत गरीबों की।
कर्म पथ पर चलते,कर सुख की कामना।
सुख की लालसा में,करते दुःख का सामना।
दुःख नहीं है छोड़ता,कभी संगत गरीबों की।
सह ह्रदय की वेदना, चलाते छेनीे-हथौड़ियां ।
जानते हैं तब मिलेगी,आज उनको कौड़ियाँ।
पेट की खातिर चलता,यह जुगत गरीबों की।
रोटियों की आस में, देख रहे हैं राह जो।
मिटा चुके हैं मन से, खिलौने की चाह जो।
मन मारना ही धर्म है,या अस्मत गरीबों की।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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