प्रेम का दीप
का दीप मन में जलाते चलो।
घर-घर से अंँधेरा भगाते चलो।
हम जिधर भी चले तम उधर दूर हो।
रोशनी पास आने को मजबूर हो।
अपनी मेहनत से तुम जगमगाते चलो।
घर-घर से अंँधेरा............
हर मानव में आए नयी चेतना।
दूर हो अज्ञानता का अँधेरा घना।
मानवों को मानवता सिखाते चलो।
घर- घर से अँधेरा.............
भेद-भाव का कोई भरम न रहे।
जीवों के लिए हम बेरहम न रहें
अन्याय को मन से मिटाते चलो।
घर-घर से अंधेरा.........
चांँद सूरज से रौशन है सारा जहाँ।
कटुता का अँधेरा क्यों छाया यहाँ।
विषमता को मन से हटाते चलो।
घर-घर से अंधेरा........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
No comments:
Post a Comment