पितरों का आशीष (मनहरण घनाक्षरी )
पितृपक्ष चल रहा,
दिन-दिन टल रहा,
समय निकल रहा,
तर्पण तो कीजिए।
कीजिए आप तर्पण,
पितरों को दे अर्पण,
फल-फूल समर्पण,
प्रसन्न हो कीजिए।
तृप्त हो पितृलोक,
मिटाते हैं रोग-शोक,
बढ़ा जीवन आलोक,
श्रद्धा भाव दीजिए।
होकर अति प्रसन्न,
पितर मन-ही-मन,
देते अन्न-धन-जन,
आशीष तो लीजिए।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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