शांति की राह
आशा का दीप जलाना है,
मानवता का पाठ पढ़ाना है।
जन को जन से मिल्लत हेतु,
शांति की राह बनाना है।
हम रहें आपस में मिल कर,
ना झगडे़ और फसाद करें।
झूठी अकड़ दिखाने को,
ना अपना धन बर्बाद करें।
जो अज्ञानी और बुजदिल हैं,
उन सबको यह समझाना है।
जन को जन से............
हम शांति से विचार करें,
हर प्राणी का अधिकार यहांँ।
हम करें नहीं अधिकार हनन,
हमें करना है उपकार यहाँ।
वे जन होते हैं महान बहुत,
जिन्होंने यह प्रण ठाना है।
जन को जन से..........
आपस के सारे झगड़े को,
हमको करना है निपटारा।
हम मिलकर ऐसा न्याय करें,
रहे ना कोई जन बेचारा।
हर मानव का सम्मान रहे,
हमें समता को अपनाना है।
जन को जन से..........
सजाता प्रिय 'समृद्धि'
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 23 सितंबर 2022 को 'तेरे कल्याणकारी स्पर्श में समा जाती है हर पीड़ा' ( चर्चा अंक 4561) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
सुंदर सृजन
ReplyDeleteसार्थक चिंतन देता सृजन।
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक संदेश देती अच्छी रचना
ReplyDeleteबधाई