अंतिम संदेश
बच्चन मोची अपनी लुगाई कजरी के साथ बस्ती के घर-घर घूम रहा था ।लोग उन्हें देखकर कह रहे थे जो बच्चनमा कभी किसी के आगे हाथ नहीं पसारा,आज बेचारे को घर-घर जाकर मांगना पड़ रहा है ।किसी ने भुनभुनाते हुए कहा -जब सारी कमाई खत्म हो गयी।तब माँगने चला।यही बात पहले मानता तो कुछ हाथ में होता। जब डॉक्टर ने कैंसर का संदेह कह बड़े अस्पताल में जांँच कराने कहा था, तभी टोले के लोगों ने चंदा उगाही कर पैसे इकट्ठे करने को कहा- तो नहीं माना। कहा-ढोल- नगाड़े और जूते की दुकान बेच दूंगा लेकिन माँगूंगा नहीं ।अरे कर्जा-उधारी और सूद पर कुछ दिन के लिए पैसे लेना कोई गुनाह थोड़े ही होता है ।अब सब धन स्वाहा हो गया तब मांगने आया है। चलो कुछ तो इकट्ठा कर हम लोग दिलबा दें उसकी इलाज खातिर। लेकिन जब वे वहाँ पहुंचे तो देखा वहाँं का नजारा ही कुछ और है। कजरी बच्चन के मुँह के घाव सभी को दिखाकर सभी से गिड़गिड़ाते हुए विनती कर रही है - हे बाबू-भैया !आप लोग को मैं हाथ जोड़ती हूँ,पाँव पड़ती हूंँ। आप लोग खैनी,गुटका,तिरंगा आदि खाना छोड़ दें ।आप अपने बच्चन -भाई का हाल तो देख ही रहे हैं इनके मसूड़े में कितना बड़ा घाव हो गया है।डॉक्टर ने कहा है- यह खैनी- गुटका खाने के कारण हुआ है ।खैनी में मिले चूने मसूड़े और गालों की चमड़ी को गलाकर उसमें सड़न पैदा करते हैं ।फिर धीरे-धीरे इतना विकराल और विभत्स रूप ले लेता है।इस विकराल घाव को ही "कैंसर"के नाम से जाना जाता है।यह घाव घातक ही नहीं, जानलेवा है। इसके होने पर शायद ही कोई बच पाता है। इसकी इलाज में सारा धन-दौलत खत्म हो गया।इनकी तो जान जाएगी ही, बच्चों का जीना भी भारी हो जाएगा।अब ये 'कुछ दिनों के मेहमान है' इतना कह वह सुबक-सुबक कर रोने लगी। सभी लोग उसकी मदद के लिए रुपए-अनाज इत्यादि देने आते,तो बच्चन हाथ जोड़कर विनती भरे लहजे में सबसे कहता हमें कोई मदद नहीं चाहिए। मैं आप सभी की सलामती के लिए दुआ करता हूंँ बस इतनी दया हमपर करिये कि अब आपलोग पान-बीड़ी, खैनी -गुटका ना खाइए । किसी प्रकार नशा ना करिए। क्योंकि 'नशा नाश का घर है।'इससे जान-माल सब नष्ट हो जाता है।इस तरह वे रोज गाँव के नुक्कड़ पर तथा अन्य गांँव जाकर लोगों को जागरूक करने हेतु अपने ज़ख्म दिखाता और अपना यह अंतिम संदेश दुहराता।फिर एक दिन अपनी पत्नी और चार बच्चों को अनाथ छोड़.......................
सुजाता प्रिय समृद्धि
संदेश प्रद लघुकथा ।
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