उतावलापन (लघुकथा)
सावन आने के पहले से ही महेशजी और उनकी पत्नी चित्रा अत्यंत उत्साहित थे। प्रत्येक वर्ष सावन महीने में वे दोनों कांवर लेकर पैदल जल चढ़ाने बैजनाथ धाम अवश्य जाते थे। इस बार भी जाना है । दोनों ने तैयारी शुरू कर दी। दोनों ने गेरूए रंग के नये कपड़े,कांवर इत्यादि खरीदे। बच्चों के लिए घर में छोड़ने हेतु जरूरी सामान खरीदे कर रख दिया। देखभाल के लिए दादा-दादी हैं ही।निश्चित तिथि को रात्रि के रेल- गाड़ी से सुल्तानगंज के लिए चल दिए। गाड़ी सुबह सही समय पर पहुंची।वे काफी खुश थे कि सुबह में ही जल लेकर चल देंगे। लेकिन जब गंगा किनारे नहाने पहुंचे।बैग में देखा तो उसमें उनके कपड़ों की जगह बेटे -बेटियों के कपड़े रखे थे। चित्रा ने बैग को अच्छी तरह से देखा तो सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने नये बैग में नये कपड़े रखे थे। लेकिन महेश जी उतावलेपन में पुराने बैग जिसमें चित्रा बच्चों के नये और अच्छे कपड़े रखी थी, उसे उठा लिया लाने के लिए। चित्रा भी इतनी उतावली थी कि यह ध्यान नहीं दे पायी कि उन्होंने पुराना बैग उठा रखा है।
अब स्नान से पूर्व दोनों मिलकर फिर से कपड़े तथा यात्रा में प्रयुक्त होने वाले जरूरी सामानों को खरीदारी की।फिर स्नानादि कर जल लेकर बाबा बैद्यनाथ धाम के लिए चल पड़े।
उतावलेपन के कारण सारे सामान दोबारा खरीदने का मलाल मन में अलग से रहा, साथ में पूरी यात्रा वे बारी-बारी से बच्चों के कपड़े से भरे बैग को भी ढोते रहे।
सुजाता प्रिय समृद्धि
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