अधजली गगरी छलकत जाय
अधजल गगरी छल-छल छलके।
इधर-उधर वह खूब मचलके।
गगरी का वह आधा पानी।
उमड़ता है जैसे गंगा-रानी।
मन-ही-मन में यह इतराता।
छलक-छलक नाच दिखाता।
कुआँ इसको लगे भिखारी।
ताल-तलैया नदियाँ सारी।
नहीं जिसे होती समझदारी।
लगती अपनी सूरत प्यारी।
बोले सबसे सदा बड़बोली।
सारी दुनियांँ इससे भोली।
अवगुण अपना न पहचाने।
बढ़-चढ़कर लघुगुण बखाने।
सुजाता प्रिय समृद्धि
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