बहन के हाथ का बना भोजन (लघुकथा)
भैरव का मन बहुत उदास था। लम्बे अंतराल से चल रहे मुकदमे में उसकी हार निश्चित थी।अब तक पानी की तरह पैसे बहाया। कितने वकीलों ने जीत का आश्वासन दिया। लेकिन, उनकी हर दलील निरस्त हो जा रही थी।विपक्ष की ओर से पुख्ते गवाह उपस्थित होते और झूठे आरोप को भी वे इस प्रकार सच साबित कर दिखाते जिसे काट पाना पक्ष को अत्यंत दुष्कर कार्य हो जाता।कल अंतिम तारीख को सजा और जुर्माना लगाया जाना है। कहां से वह जुर्माने की राशि का भुगतान कर पाएगा।सजा मुकर्रर हो गया तो घर परिवार को भोजन-पोषण भी मुश्किल हो जाएगा। इन्हीं उधेड-़बुन में लगा था कि अचानक फोन की घंटी बज उठी।न चाहते हुए भी उसका हाथ फोन उठाने को बढ़ गया।बहन की आवाज सुन आशंकित मन थोड़ा शांत हुआ।बहन ने भाई-दूज के शुभ-अवसर पर अपने हाथ का बना भोजन करने के लिए बुलाया। उसने सोचा-चलो कुछ देर तो सुकून से बीता लूं। फिर तो जो होना है उसे कौन रोक सकता।
बहन ने भोजन कराते हुए भरोसा दिलाया चिंता नहीं करो भाई!सब ठीक हो जाएगा। भगवान तुम्हें इस झूठे आरोप से अवश्य बरी कराएंगे।बहन की बात सुन वह भोजन कर उठा ही था कि उसके विपक्ष का गवाह वहां पहुंचा और उसे देखकर अचंभित हो उसकी बहन से उसका परिचय पूछा ।जब बहन ने बताया कि वह उसका भाई है तो वह अफसोस जताते हुए कहा-भाभी !आपने अपना अमूल्य खून देकर मेरे भाई की जान बचाई और मैं चंद पैसे की लालच में आपके भाई को सजा दिलाने में लगा हूं।अब जो हो मैं सच्चाई का साथ देकर आपके भाई को बचा लूंगा।
उसके बयान के आधार पर भैरव पर लगे सारे आरोप हट गये और वह मुकदमा जीत गया तब उसे विश्वास हो गया कि भाई -दूज के दिन बहन के हाथ का भोजन करने से कितना लाभ है। भगवान बहनों के दिल से निकले आशीर्वाद द्वारा भाईयों के हर कष्ट का निवारण इसी प्रकार करते हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(7-11-21) को भइयादूज का तिलक" (चर्चा अंक 4240) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसुंदर हृदय स्पर्शी कथा।
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