एक गुरुकुल में यह परम्परा थी कि नित्य कक्षा में आगमन और प्रस्थान करते समय शिष्य गण गुरुजी के चरण-स्पर्श करते थे।एक दिन गुरुजी ने शिष्यों से कहा-कल तुम सबकी परीक्षा है। दूसरे दिन नियत समय पर गुरुजी एक ऊंची तख्ती पर बैठ गये। उन्होंने अपना बायां पांव जमीन पर रखे और दाएं पांव को मोड़कर बांए पांव के घुटने पर चढ़ा लिया।सभी शिष्य परीक्षा देने उपस्थित हुए ।वे कतार बांध कर आ रहे थे और बारी-बारी से गुरुजी के चरण-स्पर्श करते। गुरु जी के बैठने के अंदाज से सभी शिष्यों को चरण -स्पर्श करने में कठिनाई हो रही थी। कोई शिष्य सिर्फ उनके नीचे रखे चरण को स्पर्श करता, कोई ऊपर वाले को , कोई बारी-बारी से दोनों को,तो कोई तिरछे हाथों से एक साथ दोनों चरणों को, कोई दोनों हाथों को दाएं बाएं घुमाते हुए दोनों चरणों को। गुरुजी प्रसन्न चित्त से सभी को आशीष देते।
अंतिम शिष्य जिसका नाम विशाल था आया। उसने असमंजस से गुरुजी के चरणों को देखा, और क्षमा-याचना के भाव से अपने दोनों हाथ जोड़ दिए। गुरुजी शिष्य को गौर से देखकर सोचने लगे, क्या यह चरण -स्पर्श नहीं करेगा ?
लेकिन उसनेे ध्यान से गुरुजी के चरणों को देखा फिर आदर- पूर्वक दोनों हाथों से गुरुजी के ऊपर वाले पांव पकड़ कर नीचे वाले पांव के बराबर रखा। उसके बाद दोनों हाथों से दोनों चरणों को स्पर्श किया। गुरु जी ने उसे भी आशीष दिया।
फिर उठकर परीक्षा कक्ष में प्रवेश किए और होंठों पर मधुर मुस्कान लिए हुए कहा आज की परीक्षा में विशाल उत्तीर्ण हुआ।
सभी शिष्य गुरु जी को अचंभित हो देखने लगे।वे मन-ही-मन सोच रहे थे अभी तो हमारी परीक्षा ली ही नहीं गयी फिर परीक्षा फल कैसे घोषित कर दिया गया ?
गुरु जी उनके नेत्रों की भाषा से उसके मन के भाव समझ रहे थे। उन्होंने कहा-आज तुम्हारे द्वारा मेरे चरणों का स्पर्श ही तुम सबकी परीक्षा थी। मैंने अपने चरणों को प्रतिकूल रखा।तुम सभी उस प्रतिकूलता को ही अपनाते रहे। परीक्षा अर्थात चरण-स्पर्श गलत तरीके से करते रहे। लेकिन विशाल ने मेरे चरणों को सही तरीके से रखा अर्थात पहले परिस्थिति को अनुकूल बनाया फिर चरण-स्पर्श किया। इसलिए प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने वाला ही जीवन की परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकता है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
व्वाहहहह
ReplyDeleteसुंदर सीख
मेरा व्हाट्स ऐप नम्बर पर बात करें।8051160102
Deleteजी दीदी ! सादर धन्यवाद।
ReplyDeleteअसमंजस
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