मेरी गुड़िया रूठी है
छोटा-सा लहंगा सिलबा दो मां!
मेरी गुड़िया रूठी है।
सुंदर-सा गहना गढ़बा दो मां!
मेरी गुड़िया रूठी है।
इसको न भाती है सुखी रोटी
अभी तो है यह बहुत ही छोटी।
थोड़ा-सा हल्वा बनबा दो मां!
मेरी गुड़िया भूखी है।
अपना मुख न कभी खोलती।
कुछ पूछूं तो यह नहीं बोलती।
अभी बोलना इसे न आता,
मेरी गुड़िया छोटी है।
बस गुमसुम-सी मुझे देखती।
मन ही मन जाने क्या सोचती।
शायद मेरी हर बातों को
मानती यह तो झूठी है।
कैसे तू अम्मा मुझे खिलाती।
रोज नहाती औ रोज पढ़ाती।
यह न पड़ती,ना ही खाती,
इसकी हर बात अनूठी है।
तुझ-सा क्या मैं प्यार न देती।
प्यारा-सा मैं उपहार न देती।
जन्मदिन इसका न आता,
मुंह फुला यह रूठी है।
मां इसको तुम जरा मना दे।
मुझे मनाने का गुर्र सीखा दे।
चाहिए हार-कंगन झुमके,
चाहिए इसे अंगूठी है।
इसे चाहिए नया खिलौना,
छोटा-सा गुड्डा बहुत सलोना।
जिसके संग यह ब्याह रचाएं,
इसलिए तो रूठी है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
सुंदर मनोहारी बाल कविता।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteधन्यवाद
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी दीदी जी सादर धन्यवाद, मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए।
Deleteभावभीनी खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भाई
Deleteमेरी गुड़िया रूठी है
ReplyDeleteछोटा-सा लहंगा सिलबा दो मां!
मेरी गुड़िया रूठी है।
सुंदर-सा गहना गढ़बा दो मां!
मेरी गुड़िया रूठी है।…
कितनी सुन्दर कविता
हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएं।
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