सावन महीना बड़ी पावन सखी री,
कर ले तू सोलह शृंगार।
लेकर आई है बहार सखी री,
कर ले तू सोलह शृंगार।
मांग सिंदूर और माथे में बिंदिया।
हाथ में मेहंदी, हरी-हरी चुड़ियां।
गले में मोतियों की हार सखी री,
कर ले तू सोलह श्रृंगार।
पांवों में पायल पहनकर बिछुआ।
लगाओ आलता अंगुली के पिछुआ।
सब मिल गाओ मल्हार सखी री।
कर ले तू सोलह शृंगार।
रिमझिम वर्षा में भींगे चुनरिया।
चले पुरवाई तो उड़े अचरिया ।
मन मेरा डोले बार-बार सखी री!
कर ले तू सोलह शृंगार ।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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