रुको नहीं आहत होकर तुम (गीतिका)
हे पथिक बढ़ते चलो तुम।जिंदगी के रास्ते।।
मन कभी विचलित न करना।छोड़ने के वास्ते।।
माना पथ मुश्किल बढ़ी है।राह को मत छोड़ना।।
जीवन के दुर्गम पथों से।मुख कभी न मोड़ना।।
राह में कंटक मिले तो।रौंद उसको बढ़ चलो।।
हौसला रखकर हृदय में।पर्वतों पर चढ़ चलो।
मन पराजित मत करना।हिम्मत नहीं तुम हारना।।
प्रपंच से आहत न होना।मन में रखो धारना।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
आपकी लिखी रचना आज ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बृहस्पतवार 24 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार दी जी!सादर नमस्कार।
Deleteप्रेरक रचना दीदी।
ReplyDeleteसादर।
सप्रेम धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर प्रेरणास्पद रचना 🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteप्रेरणादायक रचना।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सखी!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteराह में कंटक मिले तो।रौंद उसको बढ़ चलो।।
ReplyDeleteहौसला रखकर हृदय में।पर्वतों पर चढ़ चलो। ज़िन्दगी में हौसला बढ़ाने की प्रेरणा देती सुंदर रचना ।
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteमाना पथ मुश्किल बढ़ी है।राह को मत छोड़ना।।
ReplyDeleteजीवन के दुर्गम पदों से।मुख कभी न मोड़ना।।---बहुत गहरी रचना...।
जी धन्यवाद
ReplyDeleteराह में कंटक मिले तो।रौंद उसको बढ़ चलो।।
ReplyDeleteहौसला रखकर हृदय में।पर्वतों पर चढ़ चलो
बहुत ही सुन्दर प्रेरणादायक गीतिका
वाह!!!
जी बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत सुंदर प्रेरक प्रस्तुति
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteसुन्दर प्रेणादायक रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआभार
Deleteआभार
ReplyDeleteआभार आपका
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