संगीता,संजय अउर संतोष माय के साथ शहर में रहके पढ़ हलै।काहे कि गांव में कालेज नै हलै। एक बार माय कोय काम से गांव गेलै तब तक लौक डाउन लग गेलै।कनै बाहर आना-जाना बंद। घरे में रहके पढ़ाया-लिखाय करना,टी.बी.देखना,लूडो खेलना, मोबाइल पर दोस्त से बतियाना, तीनों के इहे काम हलै।
जेकरा घर में केकरो कोरोना हो जाय ओकर घर सिल कर देल जाय। मोबाइले पर पता चललै कि जेकर घर सिल हकै ओकर घर समान घटल हकै।कोरोना बीमार के घर खाना बनाना भी मोश्किल हकै।
तब तीनों भाय-बहिन बैठकें विचार कैलकै कि थोड़ा समाज सेवा कैल जाय।अब दुनु भाय मिलके बाजार से सबके सामान लाके दुआरी पर पहुंचा देय अउर संगीता कोरोना बीमार के दुआरी पर खाना बनाके पहुंचा देय।गरबा में गांव से आबल आटा,चाउर,दाल,आलू,प्याज सब हैइए हलै।
जब लौक डाउन टुटलै तब माय-बाबुजी अइलथिन तब इ सब बात सुनके बड़ी खुश होलथिन। लेकिन उनका इ डर सताबे लगलै कि सब कोरोनामा बीमरियन के घर जाय से एहो सबके तो कोरोना के छूत नै लग गेलै। तब उनका समझाके तीनों बतैलकै कि हमनी केकरो घर चाहे बजार दू गो मास्क लगाके अउर गमछी से माथा-मुंह झाप के जा हलिऐ आउर आके सब कपड़ा के साबुन से धोके नहा हलिऐ।भोरे-सांझ गर्म पानी में सिंधा निम्मक देके गरारा कर हलिऐ। फिर पानी के भाफ नाक-मुंह से ले हलिऐ।
उ सबके बात सुनते सामने बाली चाची ऐलथिन तो कहलथिन।
कुछो नै होतै इ बुतरुअन के।इ सबके समाज के आशीर्वाद मिललै। भला करे वाला के रछा भगवान कर हथिन।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
No comments:
Post a Comment