नाम तुम्हारा था लक्ष्मी पर,
थी तुम दुर्गा की अवतार।
की भले ना बाघ सवारी,
होकर घोड़े पर सवार।
एक हाथ में लेकर ढाल,
दूसरे हाथ में ले तलवार।
खदेड़ अंग्रेजी राक्षसों का,
करती जाती थी संहार।
देश की आजादी खातिर तू,
दे दिया जीवन बलिदान।
विश्व वीरांगना कहलाई तू,
थी नारी तुम बहुत महान।
दुष्ट फिरंगियों के शोणित से,
किया देश की धरती लाल।
अंग्रेजो से तू लेकर टक्कर,
किया जग में उन्नत भाल।
हे ! महान वीरता की देवी,
हम नारियों को तुझपर शान।
हम सब गाएं तेरी जयगाथा,
देश को तुझपर है अभिमान।
अपनी वीरता के वैभव से,
महकाया है देश का चमन।
हे वीर-भूमि भारत की पुत्री,
सहस्त्र-कोटि है तुझे नमन।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
वाह! बहुत सुंदर रचना।
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