हम देश को बनाएंगे, गुलशन से भी प्यारा।
बन जाए हिन्द मेरा, संसार में न्यारा।
इसकी गली-गली में,बसे प्यार के ही घर हों।
बसी प्यार की ही बस्ती,बसे प्यार के नगर हों।
पंगडंडियां प्यार की हों,और प्यार के डगर हों।
मंदिर भी प्यार की हो, पूजा जिधर-जिधर हो।
स्वर प्यार के ही गूंजे, संकल्प हमारा।
बन जाए हिंद मेरा..............
इसके वन-उपवन में,लगे वृक्ष प्यार के हों।
पेड़ों की डालियों में,लगे फल भी प्यार के हों ।
फुलवारियों में खिलती कलियां भी प्यार की हो।
पर्वतों पर इसकी, चोटियां भी प्यार की हों।
नदियों के दोनों कूल में,बहे प्रेम की धारा।
बन जाए हिंद मेरा.................
हम रोशनी करेंगे, प्यार के दिये जलाकर।
दूर होगा अब अंधेरा, नफरतों को मिटाकर।
हम भेद-भाव छोड़े,मन से सभी हटाकर।
दुखित-पीड़ित जनों को,अपने गले लगाकर।
हम एक सुर में बोलें, मिल्लत का नारा।
बन जाए हिंद मेरा...................
हम मातृ भू की मस्तक, सत्कर्म से मढ़ेंगे।
पग-पग कदम मिलाकर,ऊपर तलक चढ़ेंगे।
जब राह ना मिले तो,नव पंथ हम गढ़ेंगे।
हम साथ-साथ चलकर, मंजिल तरफ बढ़ेंगे।
अपने सभी जनों को, देकर के हम सहारा।
बन जाए हिंद मेरा.................
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित
सार्थक संकल्प ... सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteजी सादर धन्यवाद दी
ReplyDeleteबहुत खूब सुजाता जी | यदि ये संकल्प पूरा हो जाए तो रामराज्य ही आ जाए सखी | सदभावनाओं को उकेरती सुंदर रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं|
ReplyDeleteआपननकी सुंदर भावना को नमन मेरी प्यारी सखी।
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