बैठे धरना पर देखो किसान देश के।
चाहे मानो ना ये हैं , गुमान देश के।
किसान हमारे अन्नदाता हैं,
इनपर नाज है हमको।
इनके दम पर हम राजा हैं,
दिलवाते ताज में हमको।
इनके दम पर हम बनते,महान देश के।
बैठे धरना पर देखो किसान देश के।
राजनीति क्यों करते तुम,
इनकी मेहनत पर भाई।
कठिन परिश्रम ये करते हैं,
इनकी है कृषि कमाई।
लोग करते क्यों इनको परेशान देश के।
बैठे धरना पर देखो किसान देश के।
आकर कोई नियम बता दे,
कोई तो समझा दे।
अधिनियम बना है उनके हक में,
आकर तो बतला दे।
उन लोगों का होगा ,एहसान देश के।
बैठे धरना पर देखो, किसान देश के
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
रांची, झारखंड
स्वरचित, मौलिक
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