भाई रे! सोंच -समझ कर चल।
थोड़ा सम्हल-सम्हल कर चल।
यह मत सोंचो आकाश चढ़ूँ।
यह मत सोंचो पाताल गिरूँ।
अपनी धरती पर ही तू चल।भाई..
यह मत सोंचो चलूँ नहीं।
यह मत सोंचो रुकूँ कहीं।
जिस पथ पर कभी निकल।भाई..
अच्छी चाह को छोड़ो मत।
मुँह सत्पथ से मोड़ो मत।
अच्छे कर्म करो हर पल।भाई.....
लक्ष्य पंथ पर बढ़े चलो।
पर्वत पर भी चढ़े चलो।
अपने पथ पर रहो अटल।भाई....
वैसी आग न सेंको तुम।
वैसी धूप न देखो तुम।
जिसमें तन-मन जाए जल।भाई...
वस्तु पराई न छुओ तुम।
दुर्लभ बीज न बोओ तुम।
चाहे दिल जाए मचल।भाई......
जब मुख को खोलो तुम।
मीठी बोली बोलो तुम।
देखो पत्थर भी जाए पिघल।भाई.
कभी न आँखें करना नम।
काम सभी तू करना संवयं।
जीवन होगा शुद्ध-सरल।भाई.....
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित (मौलिक)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteदीदीजी को सादर नमन।मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए हार्दिक आभार दी।बहुत-बहुत धन्यबाद।
Deleteसुजाता जी की कवितायें ...बढ़िया तुकबंदी के साथ..पढ़कर बहुत अच्छा लगा...वस्तु पराई न छुओ तुम।
ReplyDeleteदुर्लभ बीज न बोओ तुम।
चाहे दिल जाए मचल।भाई......वाह
सादर आभार आदरणीय।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद एवं आभार।
ReplyDeleteकभी न आँखें करना नम।
ReplyDeleteकाम सभी तू करना संवयं।
जीवन होगा शुद्ध-सरल।भाई.
वाह!
सादर धन्यबाद एवं आभार।
Deleteबहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteसादर आभार सर।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-10-2020 ) को "उस देवी की पूजा करें हम"(चर्चा अंक-3860) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
आ० सखी कामिनी जी! मेरी रचना को चर्चा अंक में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर सीख देती सटीक रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन सखी।