छत के मुंडेरे के पास बैठ सुमित्रा जी आसमान में छाई लालिमा को अपलक निहार रही थीं।सुर्योदय से पूर्व जागने की आदत उन्हें बचपन से थी।सुबह रसोई का काम निपटाकर तैयार हो विद्यालय के लिए प्रस्थान करती।
पेशे से शिक्षिका सुमित्रा जी को विद्यालय से आने के पश्चात गरीब और अनाथ बच्चो को सुशिक्षित और संस्कारित करने में बड़ा आनंद आता।सच पूछें तो यही उनका सांध्य-आराधन था।लॉक डाउन के कारण ना तो विद्यालय जाना था, ना ही बच्चों को पढ़ना था।परिवार के लोग सुबह देर से जागते।
किसी को कहीं जाना नहीं।रसोई की भी कोई जल्दी नहीं।सुबह उठकर थोड़ी देर छत पर टहलने लगीं।अकेले में आसमान-सूरज, पेड-पौधे़,पशु-पक्षियों ,नदी-तालाबों इत्यादि को देख मन में अनेक प्रकार के सुविचारों का उदय होता।कई दिनों तक उन विचारों को मथने के बाद उन्होंने उन्हें लिपिबद्ध करने की ठानी।और कोरोना-काल की विषमताओं और गरीबों की दयनीय दसा का सजीव चित्रण कर अनेकानेक कविता और कहानियों का रूप देने लगी।दैनिक मजदूरी या व्यापार कर कमाने वाले तथा प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थितियों एवं मजबूरियों को अपनी लेखनी 'द्वारा खूब उकेरा।अपनी रचनाओं 'द्वारा जन-जागरण करना अब उनकी दिनचर्या हो गई थी।सभी ने उन्हें उनकी इस प्रसंशनीय कार्य के लिए खूब सराहा। इस प्रकार लॉक डाउन न सिर्फ सभी लोगों को कोरोना से संक्रमित होने से बचाया,अपितु साहित्य प्रेमियों के मन में साहित्य को उदय कर सम्पूर्ण समाज में साहित्यिक सेवा करने का सुनहरा अवसर प्रदान किया।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर धन्यबाद भाई।
Deleteआपने सच कहा सुजाता जी | साहित्य प्रेमियों ने इस संक्रमण काल का साहित्य अध्ययन और सृजन के लिए खूब सदुपयोग किया है \ हालाँकि मेरा लेखन बहुत कम हो गया इस दौरान |पर सुमित्रा जी जैसी जीवट वाले लोगों ने इस समय का खूब लाभ लिया |
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी रेणु जी! सादर नमन।
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