अँग्रेजी दास्ता से मुक्त होने के बाद हमारा देश भारत आत्म-निर्भर हो हर क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारियों को बड़ी संजीदगी से निभाता चला गया।अपनी विशालता को अक्षुण बनाए रखने के लिए विकास के सपने देखने लगा । उन सपनों को साकार करने के लिए बहुत सारे कल-कारखानें , शिक्षण-संस्थानों एवं बहुउद्येशी कंपनियों एवं परियोजनाओं का संचालन-परिचालन का काम सुचारू रूप से करने के लिए कृतसंकल्प हो उठा।देशवासियों के सुख वैभव के लिए अनेकों निर्माण योजनाएँ चलाए और कामयाबी भी मिली।अपितु अभी भी भारत के सम्मुख कुछ चुनौतियाँ विराजमान हैं जिसमें सर्वप्रमुख है शिक्षा -यहाँ प्रतिभा की कमी नहीं किन्तु शिक्षण-संस्थानों एवं शिक्षकों के आभाव के कारण या तो उनकी प्रतिभा कुण्ठित हो जाती है या फिर विश्व गुऱु कहलाने वाला भारत के होनहारों को उच्च शिक्षा एवं रोजगार के लिए विदेशी शिक्षण-संस्थानों एवं कंपनियों की शरण लेना पड़ता है।
दूसरी प्रमुख समस्या बेरोजगारी की है । मजदूर वर्ग अपने राज्य को छोड़ दूसरे राज्यों के प्रवासी हो जाते हैं ।अगर विदेशी उत्पादों के आयात रोककर अपने शहर अथवा राज्यों में ही छोटे-छोटेे कल-कारखानें खोलकर रोजगार उपलब्ध कराया जाए तो वे दूसरे राज्यों एवं देशों मे पलायन न करें।छोटे-छोटे इलेक्ट्रॉनिक सामानों के लिए हम चीन जैसे मतलबी और धोखेवाज देशों पर निर्भर न होकर अपने ही देश में उनका निर्माण कार्य करें।दुख उस समय सबसे ज्यादा होता है जब दीपावली के दीये मोमबत्तियाँ स्वस्तिक-झालर एवं सजावट के अन्य सामान भी 'मेड इन चाइना' होते हैं।इस प्रकार देश वासियों की प्रतिभा को पंगू बनाकर हम विदेशी उत्पादों पर निर्भर हो जाते हैं।अगर उन सामानों का निर्माण-कार्य अपने देश में प्रारम्भ किया जाए तो देश वासियों को रोजगार भी उपलब्ध होगा और हमारा देश आत्म निर्भर बन एक एक सशक्त ऱाष्ट्र के रूप में उभर कर दुनियाँ के समक्ष शान से खड़ा होगा।
कौशल विकास के लिए लघु-उद्योग,कुटीर उद्योग घरेलु उत्पादों को बढ़ाबा देना एवं बाजार उपलब्ध कराना प्राथमिक जिम्मेदारियों की श्रेणी में रखना होगा।इन छोटे-छोटे उद्योगों 'द्वारा भी लोगों को रोजगार मिलेंगे और जरूरत के छोटे-छोटे सामान भी उपलब्ध होंगे। चीनी एप के बंद होने से देश वासियों में जो खुशी है , उससे कई गुना खुशियाँ स्वदेशी सामानों का निर्माण एवं इस्तेमाल से मिलेगा। स्वदेशी अपनाना आज भारत के लिए महत्वपूर्ण एवं सर्वप्रमुख चुनौती बनकर खड़ी है।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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