आया वसंत लेकर मधुमास।
वन-उवपन खिल गया पलास।
रंग इसका है श्रृंगार भरा।
है लाल-लाल अंगार भरा।
झूण्ड बना खिल जाता है।
पेड़ों पर आग लगाता है।
दहक-दहक करता परिहास।
वन-उवपन खिल गया पलास।
अधखिला-सा डाल-डाल।
आधा काला आधा लाल।
लगता अंगीठी अधसुलगी।
लटक डालियों के फुनगी।
औषधीय गुण भरें है खाश।
डाल-डाल खिल गया पलास।
लगता लाल चोंच के शुक।
इसलिए कहाता है किंशुक।
रंग फाग का लेकर आता है।
पर हाथ न किसी के आता है।
डालियाँ इसकी चूमे आकाश।
डाल-डाल खिल गया पलास।
यह है परसा यह है केसु।
यह-ही रक्तपुष्प यह-ही टेसु।
पत्तों को यह ढक जाता है।
इसलिए तो ढाक कहाता है।
है बस त्रीपत्रक सुंदर सुवास।
डाल-डाल खिल गया पलास।
सुजाता प्रिय
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
६ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हृदय तल से धन्यबाद श्वेता!
ReplyDeleteलाज़बाब सृजन सुजाता जी ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर नमन।
ReplyDeleteआया वसंत लेकर मधुमास।
ReplyDeleteवन-उवपन खिल गया पलास। प्रिय सुजाता जी , मेरे शहर मेंमैने पलाश ना के बराबर देखे हैं | सच कहूं तो पिछले ही साल दिल्ली में मैंने पहली बार पलाश देखा | उसे देखकर स्तब्ध रह गयी | वही पलाश आपकी रचना में खिल रहे हैं |हार्दिक शुभकामनाएं सखी | आपका लेखन भी यूँ ही खिला रहे | सस्नेह