Saturday, August 24, 2019

शिला तेरा रूप अनूप

शिला तेरा है तन कठोर।
और है तेरा जीवन  कठोर।
तू शांत-चित सदा ही निश्चल।
अकुलाती ना होती  विकल।

        जाने किस काल से हो पड़ी।
        आँधी तुफान में सदा अड़ी
        जल धरा में है अडिग गड़ी।
        सर्दी-गर्मी-वर्षा सहकर खडी।

तूने पाया है  साहस अनेक।
तू मौन खड़ी सब रही देख।
उत्थान-पतन औ लय-विलय।
वह रौद्र रूप में होता प्रलय।

        तू देवी - देवता यक्ष बनी।
        तू साक्षी सदा प्रत्यक्ष बनी।
        तू ही खड्ग,हथियार बनी।
        तू गुफा-खोह,घर-बार बनी।

तू ऊँचे पर्वत- पठार बनी।
तूला पर  तू ही भार  बनी।
तू सिलपट लोढ़ा चक्की है।
तू  घोटन,बेलन ,चौकी  है।

        तू गिट्टी बालू ,कंकड़ बनी।
        तू वेशकीमती पत्थर बनी।
         शिला तेरा है अनेक रूप।
        हर रूप तुम्हारा है अनूप।
                      सुजाता प्रिय

4 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २६ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता।पाँच लिकों के आनंद पर मेरी रचना को साझा करने के लिए।

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  3. बहुत ही लाजवाब
    तू देवी - देवता यक्ष बनी।
    तू साक्षी सदा प्रत्यक्ष बनी।
    तू ही खड्ग,हथियार बनी।
    तू गुफा-खोह,घर-बार बनी।
    वाह!!!!

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  4. आभार सुधा बहन।उत्साहवर्धन के लिए सादर धन्यबाद।

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