Saturday, August 10, 2019

रक्षा की शर्त

लो आया राखी का त्योहार।
  लेकर भाई -बहन का प्यार।
    बाँध कलाई राखी के धागे।
      रख आरती की थाली आगे ।

भैया तुझसे  प्यार मैं माँगू।
    छोटा- सा उपहार मैं माँगू।
      मेरे लिए कुछ शर्त थी तेरी।
        माना थी रक्षाअस्मत कीमेरी।

कभी अकेली कहीं न जाऊँ।
  पढ़- लिखकर सीधे घर आऊँ।
    तन को वसन से पूरा ढककर।
        चलूँ  राह में नजर झुकाकर।

लो ,मैंने रख ली लाज तुम्हारी।
आई न इज्जत पर आँच तुम्हारी।
      इसके बदले  एक शर्त है मेरी।
          राखी पर यह एक अर्ज है मेरी।

जैसे करते थे तुम मेरी रक्षा।
  सब नारियों को देना सुरक्षा।
    दुःशासन तुम कभी न बनना।
      लाज किसी की कभी न हरना।

सदा सभी को केशव बनकर।
  रक्षा करना तुम चीर बढ़ाकर।
    नारियों का सम्मान तू करना।
      विनती करती है तुझसे बहना।
                    सुजाता प्रिय

11 comments:

  1. बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता! मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद पर साझा करने के लिए।

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  2. वाह!!बहुत खूबसूरत रचना सुजाता जी ।

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  3. जी सादर धन्यबाद सखी सुभाजी।नमस्कार ।

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  4. बहुत सुन्दर रचना...हर बहन अपने भाई से यही शर्त रखे और भाई इसका मान रखे तो भय ही समाप्त हो जाय....
    बेहतरीन सृजन।

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  5. जी सुधा बहन धन्यबाद।अब हम माँ-बहनों को भी दृढ़ संकल्प के साथ अपने-अपने भाई एवं बेटों को बचपन से ही इस तरह से शिक्षा एवं संस्कार देना होगा,तभी नारियों की इज्जत सुरक्षित रहेगी।

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  6. बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......

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  7. उत्साह बर्धन के लिए सादर धन्यबाद भाई।

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  8. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (5 -8 -2020 ) को "एक दिन हम बेटियों के नाम" (चर्चा अंक-3784) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद एवं आभार सखी।

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  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  10. सादर धन्यबाद सखी

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