शब्दों के माया-जाल में हम फँसते चले जाते हैं।
बुरे शब्द पर रोते और अच्छे पर हँसते चले जाते हैं।
अक्षरों के संयोजन से बनाते हैं हम शब्द,
शब्दों के संयोजन से वाक्य- लेख रचते चले जाते हैं।
शब्दों से उजागर होते हैं अन्तर्मन के सुविचार- कुविचार,
शब्द बोल विचारों को समक्ष रखते चले जाते हैं।
मन- दर्पण होते हैं हमारे बोले हुए शब्द,
शब्दों में भावों को हम परसते चले जाते हैं।
तीर- से चुभते हैं और गोलियों- से बेधते हैं शब्द,
कभी शब्दों के मिठास को हम तरसते चले जाते हैं।
मीठी फुहार- सी लगती कभी शब्दों की लरियाँ,
कभी अमृत- बूँद बन मन में बरसते चले जाते हैं।
कभी लयबध मधुर तान बन गूँजते हैं शब्द,
कभी सुर- ताल बन गीतों में लरजते चले जाते हैं।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 01, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी दीदीजी सादर नमस्कार।पाँच लिकों के आनंद में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत -बहुत धन्यबाद।
ReplyDeleteजी दीदीजी सादर धन्यबाद पाँच लिकों के आनंद में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यबाद।
ReplyDeleteवाह..बहुत सुंदर...शब्दों की महिमा अपरम्पार..शब्द नौका हो मन भव पार,शब्द ही तोड़े शब्द ही जोड़े,बेशकीमती शब्द की धार।
ReplyDeleteधन्यबाद बहन स्वेता शब्दों की महिमा समझने और उसकी उत्कृषटता बताने के लिए।
Deleteवाह बहुत सुन्दर शब्दों का अनोखा संसार।
ReplyDeleteयहीं राग यहीं द्वेष शब्द बदरता रहता वेष।
जी बहन धन्यबाद उत्साह बर्धन के लिए।सादर।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत- बहुत धन्यबाद ओंकार भाई
Deleteशब्दों की बहुत सुंदर व्याख्या ,प्यारी रचना ,सादर
ReplyDeleteजी बहन धन्यबाद उत्साह बर्धन के लिए।
Deleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यबाद बहन सादर
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