झूला एक लगा दो माँ.........
आम पेड़ की डाली पर,
झूला एक लगा दो माँ।
पेंग बढ़ाकर नभ को छू लूँ,
मुझको जरा झूला दो माँ।
सिंदूरी लालिमा देखो,
आसमान में बिखरा है।
सूरज का मुखडा़ जैसे
नवदुुल्हन - सा बिखरा है।
मैं भी जग रोशन कर डालूं,
ऐसी लगन लगा दो माँ।
देखो कलियाँ क्यारी-क्यारी,
खिल- खिलकर मुसकाती हैं।
पुलकित हो हँस डाली-डाली,
हँसना हमें सीखाती हैं।
मैं भी फूलों-सी खिलकर जाऊँ
मुझको जरा हँसा दो माँ।
काली कोयल पंचम सुर में,
मीठा गाना गाती है।
भौरों की गुनगुनाहट ,
उसमें ताल मुसकाती है।
मैं भी कुछ तो मीठा गाऊँ,
ऐसी गीत सीखा दो माँ।
देखो बागो में पेड़ों की,
हरी- भरी सब डाली है।
फूल-पेड़,वन- उपवन से,
धरती पर हरियाली है।
हरी- रहे धरती यह मेरी,
कुछ तो पेड़ लगा दो माँ।
व्वाहहह...
ReplyDeleteमैं भी कुछ तो मीठा गाऊँ,
ऐसी गीत सीखा दो माँ।
बेमिसाल...
सादर...
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई।सादर आभारी हूँ।
Deleteबेहतरीन..
ReplyDeleteलिखते रहिए..
सादर...
जी दादाजी सादर आभार उत्त्साहबर्धन एवं प्यार के लिए।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत- बहुत धन्यवाद स्वेता।पाँच लिंकों का आनंद पर मेरी रचना को साझा करने के लिए सबको दिल से आभार।
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ReplyDeleteदेखो बागो में पेड़ों की,
हरी- भरी सब डाली है।
फूल-पेड़,वन- उपवन से,
धरती पर हरियाली है।
हरी- रहे धरती यह मेरी,
कुछ तो पेड़ लगा दो माँ।
बहुत सुन्दर...
दिल की गहराइयों से आभार।सादर
Deleteआपको पढना एक सुखद अनुभव है
ReplyDeleteजी धन्यवाद।
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