अपराजिता
Saturday, July 19, 2025
संगति का फल। एक मेले में एक शिकारी दो तोते था बेच रहा। एक का दाम पचास रुपए,एक का केवल एक रुपैया । एक राजा अचरज से पूछा दाम में इतनी अंतर कैसे।शिकारी बोला-जांँच कर देखें,फिर दीजिएगा मुझको पैसे। राजा ने पहले लाकर दोनों तोते को आजमाया। बारी-बारी से अपने सायन-कक्ष में दोनों को रखवाया। नींद खुली तो पहला तोता चिल्लाकर था बोल रहा। उठ रे मूर्ख निकम्मा!आलसी जैसा पड़ा है क्या। चल जल्दी से नकाब लपेटकर दूर देश में जाओ। धनिकों को बंदूक दिखाकर खजाना लूट कर लाओ। दूसरे दिन दूसरे तोते की बड़ी कान में मधुर आवाज।सुप्रभातम सुप्रभातम भोर हुई उठिए महाराज। स्नान ध्यान कर जल्दी से आप सभा में जाएंँ। समस्या सुनकर जनमानस के समाधान कुछ बतलाएंँ। आकर शिकारी ने बोला दोनों तोता एक मांँ की हैँ संतान। दोनों की मीठी कड़वी बोली संगति का है परिणाम। पहले तोता डाकुओं के अड्डे के पास रहता था। दूसरा तोता एक मुनि के आश्रम के निकट रहता था । जब मैंने दोनों को पकड़ा और सुना दोनों की बोल। एक का दाम एक रुपैया रखा,दूसरे का मोल-अनमोल। सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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